Monday, February 27, 2017

मेरी बाई मुझसे क्या कहना चाहती होगी

NOTE: This is fictional.

पिछले कई दिनों से मेरे घर में काम करने वाली बाई नहीं आई।
काफी दिन उसकी राह ताकी, अंततः सोचा कुछ मुश्किल decisions लेने ही पड़ेंगे।
अगली बार जब वह आई, तो मैंने उसको नौकरी से निकाल दिया।
रविवार का दिन था, मैं ठीक से नींद से उठा भी न था।

पिछली रात से सोई मेरी गर्लफ्रेंड भी मेरे सिरहाने हलके खर्राटे ले रही थी।
मेरी बाई की आँखों में आंसू थे, काम से निकाले जाने का खूब सारा उमड़ता दर्द, और शायद थोड़ी शर्मिंदगी...
पर क्या उसकी आँखों में मैंने कुछ और देखा? हाँ शायद...
वह कोस रही थी मुझे, और हर उस चीज़ को जिसका मैं प्रतीक हूँ।

'अविवाहिक ही किसी बाप की बेटी को घर ले आए?'
'आज तक जितनी गन्दगी तेरे नर्म बिस्तर के नीचे झुक के घुटनो के बल निकाली, उसका हिसाब भूल गए?'
'बिना 30 day notice के काम से कौन निकालता है'?
'साले तुम सो कैसे सकते हो सुबह साढ़े ग्यारह बजे तक'?

'खुद से निचलों के चेहरे पे यह एक तमाचा नहीं?
अम्बानी-बिर्ला की उत्श्रंखलताओं पर तो खूब विरोध व्यक्त करते रहते हो,
खुद का दोगलापन दिखता नहीं?
तुम गांजा-सिगरेट का कचड़ा ज़मीन पर ऐसी अदब से फैलाते हो, मानो मैं तुम्हारी बाई नहीं, दासी हूँ!

पैसे की मेरी मजबूरी का फायदा उठा के मेरी एक-एक दिन की छुट्टी का हिसाब रखते हो!
साले गरीबों की बस्ती में आ के ही क्यों तुम्हारे अंदर का तर्राट bargainer जाग उठता है?
सुपरमार्केट में जा के क्यों नहीं पाई-पाई का हिसाब मांगते?

कमीने, तुझे पता भी है मेरे घर में क्या चल रहा है?
एक पति है, नालायक, जिस से न दिन रहते काम होता है ना रात।
माँ बाप हैं जो अपना पराया धन बेच आए किसी अंजान मर्द को।
और एक है तू, जो हमेशा अपने आलिशान महल में इस सब से अंजान सोता रहता है।

अब तुम कहोगे कि तुम बहुत मेहनती हो, काम के पक्के पाबन्द हो।
दिन भर अपनी कुर्सी पर बैठ के अंग्रेजी के बड़े-बड़े शब्द type करते हो।
नौ से पांच पूरी लगन से काम करके तुम यह अपेक्षा करते हो कि सब तुम्हारे जैसे ही कर्मठ हों।
और कभी कभार कविता की भावनाओं में बह कर कुछ पंक्तियाँ समाज के दबे कुचलों पर भी समर्पित करते हो।

बहुत बहुत धन्यवाद कि तुमने मेरे बारे में इतना सोचा।
पर थोड़ा और सोचते तो पाते कि मुझमें और तुम मे फर्क सिर्फ तबके और अमीरीयत का है।
गौर करने की बात है कि यदि मेरा जन्म तुम्हारे घर और तुम्हारा मेरे घर में होता,
तो क्या आज मैं यह कविता लिख रही होती और क्या तुम रो रहे होते?'

इतना कुछ अपनी आँखों से कहकर वह घर से और मेरे सुस्त Sunday से चली गई।
मैंने आँखे मलीं, मुह धोया और वापस अपनी गर्लफ्रेंड की बाहों में लिपट के सो गया,
Sunday morning वाले खूबसूरत सपने देखने।
सपने सच्चाई को सहनीय बना देते हैं, मैंने खर्राटे लेते हुए सोचा और नींद में मुस्कुराया।

1 comment:

Rohit said...

Very lovely poem and expression.