Sunday, October 18, 2015

मुझे पूरी ज़िन्दगी ppt नहीं बनाने

मुझे पूरी ज़िन्दगी ppt नहीं बनाने
मुझे words per minute की rat-race
और ctrl c और v के दल-दल में
पाओं नहीं धसाने।

 मुझे काम करना है, बड़ा बनना है,
एड़ियां घिस कर सख्त करनी हैं।
फिल्में बनानी हैं, और बना रहा हूँ!
बातें नहीं, गुल खिला रहा हूँ!

 मेरे सपनों के कोरे कागज़ को मैं,
paper planes बना कर आसमान में दाखिल कर रहा हूँ।
और मेरे सपनों में
एक सौ इकतालीस पन्नों का ppt कहीं feature नहीं करता।

 अब तुम कहोगे कि
'हर इंसान को, कभी न कभी
अपने काम को बेचना ही पड़ता है'
सच ही कहोगे!

तो ठीक है; मेरे सपनों में मेरे under
दस नौकरों की भी जगह है, जो
मेरी फिल्मों को, मेरी कलाकृतियों को
मोल भाव के तराज़ू पर चढ़ाएंगे।

और 'नौकर' शब्द से मेरा तात्पर्य
ऊंचे या निचले से नहीं;
जैसे नौकरी लगना हर मधय-वर्गीय नौजवान का स्वप्न है,
उसी तरह मेरे लिए नौकरी करने वाले लोग भी खुशनसीब होंगे।

 यह मेरा अभिमान या घमंड नहीं,
बल्कि  इरादा है; और इरादों  का क्या है ना,
निन्यानवे प्रतिशत सच नहीं होते.
पर अगर सोचो ही नहीं, तो सौ प्रतिशत नहीं होते।

सीखने के लिए गिरना अनिवार्य है
एक जीत पर हार, हज़ार हैं।
गिर तो रहा हूँ, लाखों ppt बनाकर,
कमबख्त सीख है कि फरार है!