Wednesday, October 25, 2017
Necro poetry
Saturday, August 5, 2017
Sunday, July 16, 2017
Jagga Jasoos' references
A still from 'Le Cerle Rouge' (1970) |
Tuesday, June 13, 2017
From dust till dust: a love poem
Sunday, June 4, 2017
Anvi's protraits
For a change |
Corporal shell |
A minor annoyance |
Battle hardened |
Don't look now |
Hmm? |
Sunday, May 7, 2017
Every time I said I love you
Saturday, April 29, 2017
My idea of appreciating art by criminals - in 3 points
Wednesday, March 22, 2017
कल
डर कब लगता है?
जब कुछ खोने को हो।
कल मैं उससे एक साल बाद मिल रहा हूँ .
हम पिछले साल मिले थे।
सुनने में अच्छा लगता है, परी-कथा जैसी.
काश आम-कथा होती।
आज और कल के अंतराल में
ऐसा लगता है एक अर्सा झूल रहा है।
कल मैं कोई और होऊंगा, आज कुछ और।
अंत समीप आते देख, डर लग रहा है।
मुझे मृत्यु का भय है।
शायद भय से ज़्यादा शर्म।
मेरे मन में मौत सबसे बड़ी विडम्बना है:
एक पल आप पूर्ण रूपेण जीवित हो, और अगले ही पल पूर्ण रूपेण मृत।
इसलिए मैं कभी तैयारी के बिना नहीं मारना पसंद करूँगा।
मतलब महाशय घर से निकले थे ज़िन्दगी भर के ख्वाब ले कर,
पर बीच रास्ते अचानक मौत हो गयी।
आम तौर पर मैं अपनी मौत स्वीकार कर हर दिन जीता हूँ।
पर कल अपनी मौत के लिए मैं तैयार नहीं हूँ।
सोचते हुए शर्म आती है कि यदि अगले क्षण मैं मर गया, तो लोग अख़बार में headline पढ़ के कहेंगे,
'बेचारे ने मौत के ऊपर blog लिखा और मर गया'.
कल जैसे दिनों के लिए मैं जीता हूँ।
Monday, February 27, 2017
मेरी बाई मुझसे क्या कहना चाहती होगी
काफी दिन उसकी राह ताकी, अंततः सोचा कुछ मुश्किल decisions लेने ही पड़ेंगे।
अगली बार जब वह आई, तो मैंने उसको नौकरी से निकाल दिया।
पिछली रात से सोई मेरी गर्लफ्रेंड भी मेरे सिरहाने हलके खर्राटे ले रही थी।
मेरी बाई की आँखों में आंसू थे, काम से निकाले जाने का खूब सारा उमड़ता दर्द, और शायद थोड़ी शर्मिंदगी...
पर क्या उसकी आँखों में मैंने कुछ और देखा? हाँ शायद...
'अविवाहिक ही किसी बाप की बेटी को घर ले आए?'
'आज तक जितनी गन्दगी तेरे नर्म बिस्तर के नीचे झुक के घुटनो के बल निकाली, उसका हिसाब भूल गए?'
'बिना 30 day notice के काम से कौन निकालता है'?
'खुद से निचलों के चेहरे पे यह एक तमाचा नहीं?
अम्बानी-बिर्ला की उत्श्रंखलताओं पर तो खूब विरोध व्यक्त करते रहते हो,
खुद का दोगलापन दिखता नहीं?
पैसे की मेरी मजबूरी का फायदा उठा के मेरी एक-एक दिन की छुट्टी का हिसाब रखते हो!
साले गरीबों की बस्ती में आ के ही क्यों तुम्हारे अंदर का तर्राट bargainer जाग उठता है?
सुपरमार्केट में जा के क्यों नहीं पाई-पाई का हिसाब मांगते?
एक पति है, नालायक, जिस से न दिन रहते काम होता है ना रात।
माँ बाप हैं जो अपना पराया धन बेच आए किसी अंजान मर्द को।
और एक है तू, जो हमेशा अपने आलिशान महल में इस सब से अंजान सोता रहता है।
दिन भर अपनी कुर्सी पर बैठ के अंग्रेजी के बड़े-बड़े शब्द type करते हो।
नौ से पांच पूरी लगन से काम करके तुम यह अपेक्षा करते हो कि सब तुम्हारे जैसे ही कर्मठ हों।
और कभी कभार कविता की भावनाओं में बह कर कुछ पंक्तियाँ समाज के दबे कुचलों पर भी समर्पित करते हो।
पर थोड़ा और सोचते तो पाते कि मुझमें और तुम मे फर्क सिर्फ तबके और अमीरीयत का है।
गौर करने की बात है कि यदि मेरा जन्म तुम्हारे घर और तुम्हारा मेरे घर में होता,
तो क्या आज मैं यह कविता लिख रही होती और क्या तुम रो रहे होते?'
मैंने आँखे मलीं, मुह धोया और वापस अपनी गर्लफ्रेंड की बाहों में लिपट के सो गया,
Sunday morning वाले खूबसूरत सपने देखने।
सपने सच्चाई को सहनीय बना देते हैं, मैंने खर्राटे लेते हुए सोचा और नींद में मुस्कुराया।